Menu
blogid : 1671 postid : 29

अनासिर -३

कोना एक रुबाई का
कोना एक रुबाई का
  • 82 Posts
  • 907 Comments


“ज़मीन”

आँखों मे अपने खाब बो रही है अब ज़मीन,
फसले नही उगी हैं सो रही है अब ज़मीन..

अब बाढ़ नही आती सूखा पड़ा रहता है,
दाल रोटी को भी डुबो रही है अब ज़मीन..

ऐ राम सुन रहे हो तो ले आओ अब उन्हे,
लिए गोद मे सीता को रो रही है अब ज़मीन…

मुद्दत से खुद मे दफ़्न थी, आई है अब बाहर,
अपने बदन की मैल धो रही है अब ज़मीन….

ऐ आँच चल फलक़ पे इक घर बना ले अब,
आतिश के शहर मे तो खो रही है अब ज़मीन…

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh