कोना एक रुबाई का
- 82 Posts
- 907 Comments
घरों से निकलो, छतों पे आओ , दरीचे खोलो, बहार गुज़री
पढो फातिहा के नौहे गाओ, ज़रा तो रोओ बहार गुज़री
फलक पे चन्दा चमक रहा है , ये तीरगी भी महक रही है
जो एक तारा गिरा है इस शब् ,लगा है सबको बहार गुज़री
बड़े दिनों से नहीं मिली थी, ये बाग़ भी तो उजड़ गए थे
सुनो न जानां ये तो तुम्ही हो, लगा था मुझको बहार गुज़री
तेरा तबस्सुम महक रहा है , लबों की जुम्बिश चहक रही है
बहार गुज़रे गुलों से सचमुच , जो आज कह दो बहार गुज़री
ये फूल ऐसे दमक रहे हैं के जैसे आतिश-नुमाँ हुए हैं
ये आंच ऐसे नहीं बढ़ी है ,तभी बढ़ी जो बहार गुज़री
fatiha-qabra par padha jane wala geet
nauha- kisi ki maut par gaya jane wala geet
Read Comments