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जब भी कोई खाब निगाहो को सुनाई देगा

कोना एक रुबाई का
कोना एक रुबाई का
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जब भी कोई खाब निगाहो को सुनाई देगा
आँख को क़ैद और अश्कों को रिहाई देगा

हम तो पहले भी मिले हैं मगर खलाओं मे
जहाँ हवा भी नही है कहीं फिजाओं मे
इस जहां मे जो हम मिले तो कुछ ऐसा होगा
असर थोडा ही……हवाओं पे दिखाई देगा….

जब भी कोई……………………….

मुझको थामे हुए आखों की इक कलाई है
उसने अश्कों से तामीर अपनी पायी है
मैं तो ठहरा हूँ मगर उसने मुझे थमा है
वो जब जाएगा इन आँखों को रुलाइ देगा……..

जब भी कोई……………………….

14-6-2009

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