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दोहे

कोना एक रुबाई का
कोना एक रुबाई का
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1-
दिल की बस्ती छोड़कर, धूप गयी परदेस
प्रीतम फिर भी आयेंगे , गोरी धोये केश

2-
मैंने दिल को नाप कर , आज सिलाई सांस
धड़कन पर कसती जाये , धक् धक् बोले मांस

3-
चलते चलते राह में यूँ भी मिलना मीत
आये जैसे होंठ पर , भूला बिसरा गीत

4-
रहिमन धागा प्रेम का ,उलझा बन के जाल
सुलझाने में उतर गयी , अँगुलियों की खाल

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