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दुबली, पतली, पीली रात

कोना एक रुबाई का
कोना एक रुबाई का
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सिमटी सी शर्मीली रात
भोली छैल छबीली रात

काई काई चाँद हुआ
जब भी आई गीली रात

चाँद किनारे खड़ा रहा
जब जी आया बह ली रात

चाँद सितारों की गिरहें हैं
फिर भी है कुछ ढीली रात

साया जब खोया मेरा तब
पैराहन मे सी ली रात

यादों की परतें बिखरी हैं
मैने कितनी छीली रात

आधा ही महताब बचा है
तू भी है खर्चीली रात

हम भी क्या सुकरात से कम ?
हमने तन्हा पी ली रात

अब तब हैं इसकी साँसे
दुबली, पतली, पीली रात

“आतिश” काली शब का मारा
आँच, परी सी , नीली रात

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