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कमरे में कितने मच्छर.. कहाँ आदमी तन्हा है

कोना एक रुबाई का
कोना एक रुबाई का
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एक काफी पुरानी ग़ज़ल मिल गयी किसी प्रतियोगिता के में भेजी थी ..आप लोगों से बाँट रहा हूँ ..

ये सहरे का सपना है
देखो कितना गीला है

मुझसे मिलता-जुलता है
सन्नाटे का चेहरा है

नन्ही आँख की डिबिया में
ख्वाब हींग सा महक़ा है

अपने घर के कोने में
गीली आँखें रखता है

मुझको दुनिया रास कहाँ
मकड़ी का घर कोना है

पूरी शब आकाश पढ़ो
सबका कच्चा चिट्ठा है

कमरे में कितने मच्छर
कहाँ आदमी तन्हा है

आइने की खिड़की पे
चेहरा दस्तक देता है

चाँद के रौशन माथे पर
लगा दीए का टीका है

शोहरत की आवाज़ सुने
इंसा कितना बहरा है

आँच लगी तो पता चला
आतिश सच्चा सोना

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