कोना एक रुबाई का
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वो अपनी सेहत का अच्छे से ध्यान रखता था
वो गाँव में भी अपना इक मकान रखता था
वो मुस्कुरा के अपने कस्टमर से मिलता था
वो दिल के ओट में अपनी दुकान रखता था
बहुत बेफिक्र सा बादल था वो बरसता था
वो अपना एक अलग आसमान रखता था
वो मिलता था तो बहुत फासले से मिलता था
वो एक चाँद अपने दरम्यान रखता था
कहीं शहरियत ना उसके घर में घुस आये
वो अपनी छत पे इक ऊँची मचान रखता था
ये तो लैमार्क की थ्योरी से जान पाया हूँ
के आदमी भी कभी आँख कान रखता था
कोई आतिश को बताये के आंच झूठी थी
के जिसकी होने का इतना गुमान रखता था
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