कोना एक रुबाई का
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राग मल्हार सा गीला हैं
आवाजों का टीला हैं
किसने पानी की परतों को
नाखूनों से छीला हैं
आसमान-से दूर हुए
रिश्तों का रंग नीला हैं
चाँद पे काई जम जाएगी
कुछ रातों से सीला हैं
गाँव का कुआं कहता है
शहर का पानी पीला हैं
दस्तक तो धीमी दी थी
दरवाज़ा ही ढीला हैं
आंच सुनहरे रंग की लौ
आतिश दर्द-सा नीला हैं
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