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ज़रा एडी उठा के सैंडलों की हील तो देखो

कोना एक रुबाई का
कोना एक रुबाई का
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चढ़ा फिर से कोई सूली, ज़रा ये कील तो देखो
फलक पे हो रही है खुश बहुत वो चील तो देखो

बना कर बुत तुझे पूजा यही तालीम थी इसकी
कमाँ पर तीर को ताने हुए ये भील* तो देखो

ये टुकड़े हैं , बरसना इनको मुद्दत से नहीं आया
अगर हो जाएं इक दूजे में ये तहलील* तो देखो

ये शामें और सुबहें मैं करीने से लगाऊंगा
अगर सूरज से हो जाये ये पक्की डील तो देखो

न कांटे रास्तों पर हैं , न पैरों में बिवाई है
ज़रा एडी उठा के सैंडलों की हील तो देखो

यहाँ आतिश के रस्ते एक पल को थम गए होंगे
यहीं पर आंच ठहरी थी ये संगे मील* तो देखो

bheel – eklavya jaati se bheel tha
tehleel- ek doosre me mil jana…
sange meel – meel ka patthar

@ all

न कांटे रास्तों पर हैं , न पैरों में बिवाई है
ज़रा एडी उठा के सैंडलों की हील तो देखो

doston ye sher likhte waqt ..dimaag me kaheen nida faazli saab ka ek doha atka tha …

रस्ते को भी दोष दे , आँखें भी कर लाल
चप्पल में जो कील है , पहले उसे निकाल

ghazal post klarte hue..dil hua ki ye sher hata diya jaaye..lekin fir jaane kyun dil nahi hua..aur ise hi ghazal ka unvan bana diya… 🙂

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