कोना एक रुबाई का
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ये बागो सहरा , पहाड़ झरने ,तमाम मौसम,धनक़* के फाहे
ये चाँद तारे , हसीं नज़ारे, जो तुम न लायी कहाँ से आये
जो जा रही है तो फिर मिटा दे मेरी तमन्नाओं को वगरना
तुझे पुकारेंगे फिर किसी दिन मेरी तमन्नाओं के बुलावे
पलक जगी राह सो गयी है ,पलक राह सी नहीं थकी है
वो मुन्तजिर है कई सदी से पलक पलक राह इक बिछाये
हमारे माजी में वो बगीचा उजाड़ गया हो यही लगा था
जो आज देखा वहां खिले थे हज़ार सपने हज़ार वादे
कई बरस से मैं सुन रहा हूँ के पागलों में शुमार हूँ मैं
मेरी मुहब्बत से इल्तजा है मेरा ये ओहदा ज़रा बढ़ाये
लो आज आतिश कोई तसव्वुर किसी ग़ज़ल में न ढाल पाया
तो आंच को अब बुलाओ यारों दबी अगन को ज़रा हवा दे
dhanak- indradhnush
muntazir- intezar karta hua
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